(A) मेसोपोटामिया/सुमेर की सभ्यता – दजला-फरात नदी किनारे
(B) मिस्र की सभ्यता – नील नदी
(C) चीन की सभ्यता – ह्वांग-हो नदी
सभी सभ्यताओं ने नदी किनारे जन्म लिया क्योंकि नदियां परिवहन का साधन थी, नदियों के किनारे की भूमि उर्वरा थी एवं सभी को पानी की जरूरत थी।
Learn Spoken English Easily
सिंधु सभ्यता की लिपि –
सिंधु वासी अपने मन के भाव चित्र के माध्यम से बताते थे, अतः यह लिपि भाव-चित्रात्मक कहलाई। इसकी आकृति सांप की तरह है इसके अन्य नाम हैं – सर्पिलाकार, गोमुत्री लिपि या ब्रुस्टोफेदस,
ब्रुस्टोफेदन, ब्रुस्टोफेदम भी कहां जाता है।
सिंधु सभ्यता की लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी अर्थात पहली लाइन दाएं से शुरू होती थी और दूसरी लाइन बाएं से शुरू होती थी।
इस लिपि में मूलचित्र 64 है और चित्राक्षर 250 से 400 तक है।
इसे सर्वप्रथम वेडेन महोदय द्वारा पढ़ने का प्रयास किया गया किंतु असफल रहे।
प्रथम भारतीय जिन्होंने इसे पढ़ने का प्रयास किया किंतु असफल रहे वे थे – नटवर झा।
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार-
उत्तर – मांडा, अखनूर जिला, जम्मू-कश्मीर, नदी चिनाब
दक्षिण – दैमाबाद, महाराष्ट्र, प्रवरा नदी गोदावरी की सहायक।
पूरब – आलमगीरपुर, मेरठ, उत्तर प्रदेश, हिंडन नदी
पश्चिम – सुत्कागेंडोर, बलूचिस्तान दाश्क / दश्क नदी
सिंधु सभ्यता का विस्तार पूरब से पश्चिम 1600 किलोमीटर था और उत्तर से दक्षिण 1400 किलोमीटर था।
सम्पूर्ण क्षेत्रफल पहले → 12,99,600 वर्ग किमी.
वर्तमान- 20,00,000 वर्ग
प्राचीन आकार – त्रिभुजाकार
वर्तमान आकार – विषम चतुर्भुजाकार
सबसे पहले 1826 में चार्ल्स मैसन ने हड़प्पा के बारे में लोगों को जानकारी दी। इसने ‘अपना लेख 1842 ईस्वी में प्रकाशित किया जिसमें उल्लेख था कि भारत में प्राचीनतम नगर हड़प्पा है।
1853 ईस्वी में ए. कनिंगम ने हड़प्पा के टीले का सर्वे किया और 1856 ईस्वी में इन्होंने हड़प्पा का मानचित्र प्रस्तुत किया। इन्होंने ही 1861 ईस्वी में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की इसलिये ये भारतीय पुरात्व विभाग के जनक कहलाये। Harappan Civilization सिन्धु घाटी
भारतीय पुरातत्व विभाग का नाम 1902 ई. में कर्जन के द्वारा भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग कर दिया गया।
→ 1853-1956 – कराची से लाहौर रेल्वे लाइन बिछाने का काम चल रहा था। रेल्वे ट्रैक के नीचे सपोर्ट के लिए जॉन एवं विलियम बंधुओं ने सामने के एक टीले से कुछ इंटे निकलवाई। यही जगह आगे चलकर हड़प्पा कहलाई। इन भाईयों को इतिहास में बर्टन बंधु के नाम से पुकारा गया।
जॉन मार्शल जो उस समय भारतीय पुरातत्व विभाग के निदेशक थे, के आदेश पर राय बहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा की खोज की।
नामकरण
मुख्य रूप से तीन नाम
1. सिंधु सभ्यता (जॉन मार्शल द्वारा)
भारत विभाजन के बाद जब अनेक स्थलों की खोज हुई तब इसका नाम विस्तारित करके सिंधु घाटी सभ्यता किया गया।
2. सिंधु घाटी सभ्यता (डॉक्टर रफीक मुगल द्वारा)
3. हड़प्पा सभ्यता (वर्तमान नाम)
सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थल
1. हड़प्पा
स्थान : मोंटगोमरी, पंजाब (पाकिस्तान)
नदी : रावी नदी के बाएं तट पर
वर्ष : 1921 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : दयाराम साहनी, माधव स्वरूप वत्स, 1926 एवं मार्टिन व्हीलर, 1946
प्राप्त साक्ष्य : अन्न भंडार, शवों को दफनाने की प्रथा,
ताबूत दफन, महत्वपूर्ण सिंधु घाटी सभ्यता शहर, पहला शहर जो खुदाई और विस्तार से अध्ययन किया गया है। Harappan Civilization सिन्धु घाटी
2. मोहनजोदड़ो
स्थान : सिंध, लरकाना (पाकिस्तान)
नदी : सिन्धु
वर्ष : 1922 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : राखल दास बनर्जी
प्राप्त साक्ष्य : शवों को जलाने की प्रथा ग्रेट बाथ : सबसे बड़ा स्नान घाट, ग्रेट ग्रैनरी, नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति, दाढ़ी वाले आदमी, टेराकोटा खिलौने, बुल सील, पशुपति सील, मेसोपोटामियन प्रकार के तीन बेलनाकार सील, बुने हुए कपड़े का एक टुकड़ा, एक सील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मूर्ति मिली है। उनके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता एवं भैंसा विराजमान
3. चन्हूदरो
स्थान : सिंध, पाकिस्तान
नदी : सिन्धु
वर्ष : 1934 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : गोपाल मजूमदार
प्राप्त साक्ष्य : मनके बनाने का कारखाना, लिपस्टिक का उपयोग, काले लाइनर, कंघी (हाथी दांत और लकड़ी दोनों के)
4. कालीबंगा (काली चूड़ियाँ)
स्थान : राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला
नदी : घग्घर
वर्ष : 1953 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : बी. बी. लाल एवं बी. के. थापर
प्राप्त साक्ष्य : युग्म समाधियाँ, अग्निकुण्ड, अग्निपूजा की प्रथा, पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के, एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों के रहने हेतु) भी किले से घिरा हुआ था, घोड़े के अस्थिपंजर, जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों
5. रोपड़
स्थान : पंजाब का रोपड़ जिला
नदी : सतलज
वर्ष : 1953-56 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : यज्ञदत्त शर्मा
प्राप्त साक्ष्य :
6. लोथल
स्थान : गुजरात का अहमदाबाद जिला
नदी : भोगवा
वर्ष : 1955 एवं 1962 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : रंगनाथ राव
प्राप्त साक्ष्य : अग्निकुण्ड, युग्म समाधियाँ, घोड़े के अस्थिपंजर, चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण, दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे, मनके बनाने के कारखाने
7. आलमगीरपुर
स्थान : उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला
नदी : हिन्डन
वर्ष : 1958 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : यज्ञदत्त शर्मा
प्राप्त साक्ष्य :
8. सुतकांगेडोर
स्थान : पाकिस्तान के मकरान में समुद्र तट के किनारे
नदी : दाश्क
वर्ष : 1927 एवं 1962 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : अरिज स्टाइल, जार्ज डेल्स
प्राप्त साक्ष्य :
9. बनमाली
स्थान : हरियाणा का हिसार जिला
नदी : रंगोई
वर्ष : 1974 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : रवीन्द्र सिंह विष्ट
प्राप्त साक्ष्य :
10. धौलावीरा
स्थान : जरात के कच्छ जिला
वर्ष : 1990-91 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : रवीन्द्र सिंह विष्ट
प्राप्त साक्ष्य :
11. कोटदीजी
स्थान : सिंध प्रांत का खैरपुर स्थान
नदी : सिन्धु
वर्ष : 1953 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : फजल अहमद
प्राप्त साक्ष्य :
12. रंगपुर
स्थान : गुजरात का काठियावाड़ जिला
नदी : मादर
वर्ष : 1953-54 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : रंगनाथ राव
प्राप्त साक्ष्य : चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण
Harappan Civilization सिन्धु घाटी
रेडियोकार्बन C14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है।
सिन्धु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की।
सिन्धु सभ्यता को प्राऐतिहासिक (Protohistoric) अथवा कांस्य (Bronze) युग में रखा जा सकता है ।
इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्य सागरीय थे।
सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल दाश्क नदी के किनारे स्थित सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल हिण्डन नदी के किनारे आलमगीरपुर (जिला मेरठ, उत्तर प्रदेश), उत्तरी पुरास्थल
चिनाब नदी के तट पर अखनूर के निकट मांडा (जम्मू कश्मीर) तथा दक्षिणी पुरास्थल गोदावरी नदी के तट पर दाइमाबाद (जिला अहमदनगर, महाराष्ट्र) है।
सिन्धु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी।
सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर
की संज्ञा दी गयी है। ये हैं-मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलावीरा राखीगढ़ी एवं कालीबंगन।
स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात् हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गये हैं।
लोथल एवं सुतकोतदा–सिन्धु सभ्यता के बन्दरगाह थे।
जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार संभवतः सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
सिन्धु काल में विदेशी व्यापार
आयातित वस्तुएँ प्रदेश
ताँबा – खेतड़ी, बलूचिस्तान, ओमान
चाँदी – अफगानिस्तान, ईरान
सोना – कर्नाटक, अफगानिस्तान, ईरान
टिन – अफगानिस्तान, ईरान
गोमेद – सौराष्ट्र
लाजवर्त – मेसोपोटामिया
सीसा – ईरान
मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत् स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है।
अग्निकुण्ड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए हैं।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मूर्ति मिली है। उनके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता एवं भैंसा विराजमान हैं।
मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है। Harappan Civilization सिन्धु घाटी
हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक शृंगी पशु का अंकन मिलता है।
मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदड़ो में मिले हैं।
सिन्धु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है। यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी। जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दायीं से बायीं और दूसरी बायीं से दायीं ओर लिखी जाती थी।
सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई।
घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे। केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे।
सिन्धु सभ्यता में मुख्य फसल थी-गेहूँ और जौ।
सैंधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे।
मिट्टी से बने हल का साक्ष्य बनमाली से मिला है।
रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है।
चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं।
सुरकोतदा, कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले हैं।
तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी।
सैंधव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे।
मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिन्धु सभ्यता से ही है।
संभवतः हड़प्पा संस्कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था।
पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी कहा है।
सिन्धु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे।
वृक्ष-पूजा एवं शिव-पूजा के प्रचलन के साक्ष्य भी सिन्धु सभ्यता से मिलते हैं। Harappan Civilization सिन्धु घाटी
स्वास्तिक चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है। इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है।
सिन्धु घाटी के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं।
सिन्धु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी।
पशुओं में कुबड़ वाला साँड़, इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था।
स्त्री मृण्मूर्तियाँ (मिट्टी की मूर्तियाँ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसत्तात्मक था।
सैंधववासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे ।
मनोरंजन के लिए सैंधववासी मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे।
सिन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे।
सिन्धु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।
कालीबंगन एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों के रहने हेतु) भी किले से घिरा हुआ था।
कालीबंगन का अर्थ है काली चूड़ियाँ । यहाँ से पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के और अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले हैं।
पर्दा-प्रथा एवं वेश्यावृति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी।
शवों को जलाने एवं गाड़ने यानी दोनों प्रथाएँ प्रचलित थीं।
हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी।
लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधियाँ मिली हैं।
सैंधव सभ्यता के विनाश का संभवतः सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था।
I am Subhash joshi. हर एक पोस्ट के पीछे मेरा सबसे बड़ा मोटिव होता है अपने Readers की life में value add करना। मैंने badisuccess.com/ kyon shuru kiya ?
किसी ने कहा है कि यदि खुद को बड़ा बनाना है, तो औरों को बड़ा बनाना शुरू करो। यदि खुद को मदद चाहिए तो औरों की मदद करना शुरू करो और बस यही आधार बना badisuccess.com/ को शुरू करने का। MY CONTACT NO. 9753978693
3. सिन्धु घाटी सभ्यता (Harappan Civilization सिन्धु घाटी)
सिंधु घाटी की सभ्यता किन सभ्यताओं के समकालीन थी?
(A) मेसोपोटामिया/सुमेर की सभ्यता – दजला-फरात नदी किनारे
(B) मिस्र की सभ्यता – नील नदी
(C) चीन की सभ्यता – ह्वांग-हो नदी
सभी सभ्यताओं ने नदी किनारे जन्म लिया क्योंकि नदियां परिवहन का साधन थी, नदियों के किनारे की भूमि उर्वरा थी एवं सभी को पानी की जरूरत थी।
सिंधु सभ्यता की लिपि –
सिंधु वासी अपने मन के भाव चित्र के माध्यम से बताते थे, अतः यह लिपि भाव-चित्रात्मक कहलाई। इसकी आकृति सांप की तरह है इसके अन्य नाम हैं – सर्पिलाकार, गोमुत्री लिपि या ब्रुस्टोफेदस,
ब्रुस्टोफेदन, ब्रुस्टोफेदम भी कहां जाता है।
सिंधु सभ्यता की लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी अर्थात पहली लाइन दाएं से शुरू होती थी और दूसरी लाइन बाएं से शुरू होती थी।
इस लिपि में मूलचित्र 64 है और चित्राक्षर 250 से 400 तक है।
इसे सर्वप्रथम वेडेन महोदय द्वारा पढ़ने का प्रयास किया गया किंतु असफल रहे।
प्रथम भारतीय जिन्होंने इसे पढ़ने का प्रयास किया किंतु असफल रहे वे थे – नटवर झा।
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार-
उत्तर – मांडा, अखनूर जिला, जम्मू-कश्मीर, नदी चिनाब
दक्षिण – दैमाबाद, महाराष्ट्र, प्रवरा नदी गोदावरी की सहायक।
पूरब – आलमगीरपुर, मेरठ, उत्तर प्रदेश, हिंडन नदी
पश्चिम – सुत्कागेंडोर, बलूचिस्तान दाश्क / दश्क नदी
सिंधु सभ्यता का विस्तार पूरब से पश्चिम 1600 किलोमीटर था और उत्तर से दक्षिण 1400 किलोमीटर था।
सम्पूर्ण क्षेत्रफल पहले → 12,99,600 वर्ग किमी.
वर्तमान- 20,00,000 वर्ग
प्राचीन आकार – त्रिभुजाकार
वर्तमान आकार – विषम चतुर्भुजाकार
सबसे पहले 1826 में चार्ल्स मैसन ने हड़प्पा के बारे में लोगों को जानकारी दी। इसने ‘अपना लेख 1842 ईस्वी में प्रकाशित किया जिसमें उल्लेख था कि भारत में प्राचीनतम नगर हड़प्पा है।
1853 ईस्वी में ए. कनिंगम ने हड़प्पा के टीले का सर्वे किया और 1856 ईस्वी में इन्होंने हड़प्पा का मानचित्र प्रस्तुत किया। इन्होंने ही 1861 ईस्वी में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की इसलिये ये भारतीय पुरात्व विभाग के जनक कहलाये। Harappan Civilization सिन्धु घाटी
भारतीय पुरातत्व विभाग का नाम 1902 ई. में कर्जन के द्वारा भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग कर दिया गया।
→ 1853-1956 – कराची से लाहौर रेल्वे लाइन बिछाने का काम चल रहा था। रेल्वे ट्रैक के नीचे सपोर्ट के लिए जॉन एवं विलियम बंधुओं ने सामने के एक टीले से कुछ इंटे निकलवाई। यही जगह आगे चलकर हड़प्पा कहलाई। इन भाईयों को इतिहास में बर्टन बंधु के नाम से पुकारा गया।
जॉन मार्शल जो उस समय भारतीय पुरातत्व विभाग के निदेशक थे, के आदेश पर राय बहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा की खोज की।
नामकरण
मुख्य रूप से तीन नाम
1. सिंधु सभ्यता (जॉन मार्शल द्वारा)
भारत विभाजन के बाद जब अनेक स्थलों की खोज हुई तब इसका नाम विस्तारित करके सिंधु घाटी सभ्यता किया गया।
2. सिंधु घाटी सभ्यता (डॉक्टर रफीक मुगल द्वारा)
3. हड़प्पा सभ्यता (वर्तमान नाम)
सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थल
1. हड़प्पा
स्थान : मोंटगोमरी, पंजाब (पाकिस्तान)
नदी : रावी नदी के बाएं तट पर
वर्ष : 1921 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : दयाराम साहनी, माधव स्वरूप वत्स, 1926 एवं मार्टिन व्हीलर, 1946
प्राप्त साक्ष्य : अन्न भंडार, शवों को दफनाने की प्रथा,
ताबूत दफन, महत्वपूर्ण सिंधु घाटी सभ्यता शहर, पहला शहर जो खुदाई और विस्तार से अध्ययन किया गया है। Harappan Civilization सिन्धु घाटी
2. मोहनजोदड़ो
स्थान : सिंध, लरकाना (पाकिस्तान)
नदी : सिन्धु
वर्ष : 1922 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : राखल दास बनर्जी
प्राप्त साक्ष्य : शवों को जलाने की प्रथा ग्रेट बाथ : सबसे बड़ा स्नान घाट, ग्रेट ग्रैनरी, नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति, दाढ़ी वाले आदमी, टेराकोटा खिलौने, बुल सील, पशुपति सील, मेसोपोटामियन प्रकार के तीन बेलनाकार सील, बुने हुए कपड़े का एक टुकड़ा, एक सील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मूर्ति मिली है। उनके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता एवं भैंसा विराजमान
3. चन्हूदरो
स्थान : सिंध, पाकिस्तान
नदी : सिन्धु
वर्ष : 1934 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : गोपाल मजूमदार
प्राप्त साक्ष्य : मनके बनाने का कारखाना, लिपस्टिक का उपयोग, काले लाइनर, कंघी (हाथी दांत और लकड़ी दोनों के)
4. कालीबंगा (काली चूड़ियाँ)
स्थान : राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला
नदी : घग्घर
वर्ष : 1953 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : बी. बी. लाल एवं बी. के. थापर
प्राप्त साक्ष्य : युग्म समाधियाँ, अग्निकुण्ड, अग्निपूजा की प्रथा, पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के, एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों के रहने हेतु) भी किले से घिरा हुआ था, घोड़े के अस्थिपंजर, जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों
5. रोपड़
स्थान : पंजाब का रोपड़ जिला
नदी : सतलज
वर्ष : 1953-56 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : यज्ञदत्त शर्मा
प्राप्त साक्ष्य :
6. लोथल
स्थान : गुजरात का अहमदाबाद जिला
नदी : भोगवा
वर्ष : 1955 एवं 1962 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : रंगनाथ राव
प्राप्त साक्ष्य : अग्निकुण्ड, युग्म समाधियाँ, घोड़े के अस्थिपंजर, चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण, दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे, मनके बनाने के कारखाने
7. आलमगीरपुर
स्थान : उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला
नदी : हिन्डन
वर्ष : 1958 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : यज्ञदत्त शर्मा
प्राप्त साक्ष्य :
8. सुतकांगेडोर
स्थान : पाकिस्तान के मकरान में समुद्र तट के किनारे
नदी : दाश्क
वर्ष : 1927 एवं 1962 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : अरिज स्टाइल, जार्ज डेल्स
प्राप्त साक्ष्य :
9. बनमाली
स्थान : हरियाणा का हिसार जिला
नदी : रंगोई
वर्ष : 1974 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : रवीन्द्र सिंह विष्ट
प्राप्त साक्ष्य :
10. धौलावीरा
स्थान : जरात के कच्छ जिला
वर्ष : 1990-91 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : रवीन्द्र सिंह विष्ट
प्राप्त साक्ष्य :
11. कोटदीजी
स्थान : सिंध प्रांत का खैरपुर स्थान
नदी : सिन्धु
वर्ष : 1953 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : फजल अहमद
प्राप्त साक्ष्य :
12. रंगपुर
स्थान : गुजरात का काठियावाड़ जिला
नदी : मादर
वर्ष : 1953-54 ईस्वी
उत्खनन कर्ता : रंगनाथ राव
प्राप्त साक्ष्य : चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण
Harappan Civilization सिन्धु घाटी
रेडियोकार्बन C14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है।
सिन्धु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की।
सिन्धु सभ्यता को प्राऐतिहासिक (Protohistoric) अथवा कांस्य (Bronze) युग में रखा जा सकता है ।
इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्य सागरीय थे।
सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल दाश्क नदी के किनारे स्थित सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल हिण्डन नदी के किनारे आलमगीरपुर (जिला मेरठ, उत्तर प्रदेश), उत्तरी पुरास्थल
चिनाब नदी के तट पर अखनूर के निकट मांडा (जम्मू कश्मीर) तथा दक्षिणी पुरास्थल गोदावरी नदी के तट पर दाइमाबाद (जिला अहमदनगर, महाराष्ट्र) है।
सिन्धु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी।
सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर
की संज्ञा दी गयी है। ये हैं-मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलावीरा राखीगढ़ी एवं कालीबंगन।
स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात् हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गये हैं।
लोथल एवं सुतकोतदा–सिन्धु सभ्यता के बन्दरगाह थे।
जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार संभवतः सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
सिन्धु काल में विदेशी व्यापार
आयातित वस्तुएँ प्रदेश
ताँबा – खेतड़ी, बलूचिस्तान, ओमान
चाँदी – अफगानिस्तान, ईरान
सोना – कर्नाटक, अफगानिस्तान, ईरान
टिन – अफगानिस्तान, ईरान
गोमेद – सौराष्ट्र
लाजवर्त – मेसोपोटामिया
सीसा – ईरान
मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत् स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है।
अग्निकुण्ड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए हैं।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मूर्ति मिली है। उनके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता एवं भैंसा विराजमान हैं।
मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है। Harappan Civilization सिन्धु घाटी
हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक शृंगी पशु का अंकन मिलता है।
मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदड़ो में मिले हैं।
सिन्धु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है। यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी। जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दायीं से बायीं और दूसरी बायीं से दायीं ओर लिखी जाती थी।
सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई।
घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे। केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे।
सिन्धु सभ्यता में मुख्य फसल थी-गेहूँ और जौ।
सैंधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे।
मिट्टी से बने हल का साक्ष्य बनमाली से मिला है।
रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है।
चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं।
सुरकोतदा, कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले हैं।
तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी।
सैंधव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे।
मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिन्धु सभ्यता से ही है।
संभवतः हड़प्पा संस्कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था।
पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी कहा है।
सिन्धु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे।
वृक्ष-पूजा एवं शिव-पूजा के प्रचलन के साक्ष्य भी सिन्धु सभ्यता से मिलते हैं। Harappan Civilization सिन्धु घाटी
स्वास्तिक चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है। इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है।
सिन्धु घाटी के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं।
सिन्धु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी।
पशुओं में कुबड़ वाला साँड़, इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था।
स्त्री मृण्मूर्तियाँ (मिट्टी की मूर्तियाँ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसत्तात्मक था।
सैंधववासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे ।
मनोरंजन के लिए सैंधववासी मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे।
सिन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे।
सिन्धु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।
कालीबंगन एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों के रहने हेतु) भी किले से घिरा हुआ था।
कालीबंगन का अर्थ है काली चूड़ियाँ । यहाँ से पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के और अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले हैं।
पर्दा-प्रथा एवं वेश्यावृति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी।
शवों को जलाने एवं गाड़ने यानी दोनों प्रथाएँ प्रचलित थीं।
हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी।
लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधियाँ मिली हैं।
सैंधव सभ्यता के विनाश का संभवतः सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था।
आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है।
Harappan Civilization सिन्धु घाटी
subhash
I am Subhash joshi. हर एक पोस्ट के पीछे मेरा सबसे बड़ा मोटिव होता है अपने Readers की life में value add करना। मैंने badisuccess.com/ kyon shuru kiya ? किसी ने कहा है कि यदि खुद को बड़ा बनाना है, तो औरों को बड़ा बनाना शुरू करो। यदि खुद को मदद चाहिए तो औरों की मदद करना शुरू करो और बस यही आधार बना badisuccess.com/ को शुरू करने का। MY CONTACT NO. 9753978693