उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है, जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में ‘भारतवर्ष अर्थात् भरत का देश’ तथा यहाँ के निवासियों को भारती अर्थात् भरत की संतान कहा गया है। यूनानियों ने भारत को इंडिया तथा मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्द अथवा हिन्दुस्तान के नाम से संबोधित किया है।
भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन भागों में बाँटा गया है-
1. प्राचीन भारत
2. मध्यकालीन भारत एवं
3. आधुनिक भारत ।
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प्राचीन भारत
1. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार स्रोतों से प्राप्त होती है-
1.धर्मग्रंथ
2.ऐतिहासिक ग्रंथ
3.विदेशियों का विवरण
4.पुरातत्व-संबंधी साक्ष्य
धर्मग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारी
भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है, जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेद बसुद्धैव कुटुम्बकम् का उपदेश देते है। भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरूषय मानती है। वेद चार हैं—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। इन चार वेदों को संहिता भी कहा जाता है।
ऋग्वेद
ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है। इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त (बालखिल्य पाठ के 11 सूक्तों सहित) एवं 10,462 ऋचाएँ हैं। इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते हैं। इस वेद से आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं उनके इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है। इसके 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।
इसके 8वें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है। Sources History इतिहास स्रोत
चातुष्वर्ण्य समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्वेद के 10वें मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त है, जिसके अनुसार चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख, भुजाओं, जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए।
ब्राह्मण – मुख
क्षत्रिय – भुजाओं
वैश्य – जंघाओं
शूद्र – चरणों
नोट : धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों, व्यवसायों, दायित्वों तथा विशेषाधिकारों में स्पष्ट विभेद करता है।
वामनावतार के तीन पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्रोत ऋग्वेद है।
ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गयी है।
नोट : प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है।
यजुर्वेद
सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते हैं।
यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता है।
यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है।
सामवेद
‘साम’ का शाब्दिक अर्थ है गान । इस वेद में मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले ऋचाओं (मन्त्रों) का संकलन है। इसके पाठकर्ता को उद्रातृ कहते हैं।
इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
नोट: यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता है।
अथर्ववेद
अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्य हैं। इसके कुछ मंत्र ऋग्वैदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर है। अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निन्दा करता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व इस बात में है कि इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है।
पृथवीसूक्त अधर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है। इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों- गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गों का गाहन (खोज), रोग निवारण, समन्वय, विवाह तथा प्रणय गीतों, राजभक्ति, राजा का चुनाव, बहुत से वनस्पतियों एवं औषधियों, शाप, वशीकरण, प्रायश्चित, मातृभूमि महात्मय आदि का विवरण दिया गया है। कुछ मंत्रों में जादू-टोने का भी वर्णन है।
अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण मिलता है।
इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है। Sources History इतिहास स्रोत
पुराण – संबंधित वंश
विष्णु पुराण – मौर्य वंश
मत्स्य पुराण – आन्ध्र सातवाहन
वायु पुराण – गुप्त वंश
नोट: सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।
वेदों को भली-भाँति समझने के लिए छह वेदांगों की रचना हुई। छह वेदांग हैं-
1. शिक्षा,
2. ज्योतिष
3. कल्प
4. व्याकरण
5. निरूक्त
6. छंद ।
पुराण
भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है। इसके रचयिता लोमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। इनकी संख्या 18 है, जिनमें से केवल पाँच-मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राह्मण एवं भागवत में ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है।
नोट: पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है। अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गये हैं। स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी, वे भी पुराण सुन सकते थे। पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे।
स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी संहिता से प्राप्त होती है जिसमें जुआ और शराब की भाँति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है।
शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पुरुष की अर्धागिनी कहा गया है।
स्मृतिग्रंथों में सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जाती है। यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है।
नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
जातक में बुद्ध की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है। Sources History इतिहास स्रोत
हीनयान का प्रमुख ग्रंथ ‘कथावस्तु’ है, जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन-चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है।
जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। जैनधर्म का प्रारंभिक इतिहास ‘कल्पसूत्र’ से ज्ञात होता है। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन-कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है।
अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) हैं । यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है। इससे मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया। कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है, जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है।
अरबों की सिंध-विजय का वृत्तांत चचनामा (लेखक-अली अहमद) में सुरक्षित है।
‘अष्टाध्यायी’ (संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक) के लेखक पाणिनि हैं। इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
कात्यायन की गार्गी-संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है, फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।
पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे, इनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास का पता चलता है।
ईसा पूर्व B.C. एवं ईसवी AD
वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर (ईसाई कैलेंडर/जूलियन कैलेंडर) ईसाई धर्मगुरु ईसा मसीह के जन्म-वर्ष (कल्पित) पर आधारित है। ईसा मसीह के जन्म के पहले के समय को ईसा पूर्व (B.C.-Before the birth of Jesus Christ) कहा जाता है। ईसा पूर्व में वर्षों की गिनती उल्टी दिशा में होती है, जैसे महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में एवं मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हुआ। यानी ईसा मसीह के जन्म के 563 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का जन्म एवं 483 वर्ष पूर्व मृत्यु हुई।
ईसा मसीह की जन्म तिथि से आरंभ हुआ सन्, ईसवी सन् कहलाता है। इसके लिए संक्षेप में ई. लिखा जाता है। ई. को लैटिन भाषा के शब्द A.D. में भी लिखा जाता है। A.D. यानी Anno Domini जिसका शाब्दिक अर्थ है- In the year of lord Jesus Christ
विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी
A. यूनानी-रोमन लेखक
1. टेसियस : यह ईरान का राजवैद्य था। भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है।
2. हेरोडोटस : इसे ‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है। इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के भारत-फारस
(ईरान) के संबंध का वर्णन किया है। परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियों एवं अफवाहों पर आधारित है।
3. सिकन्दर के साथ आनेवाले लेखकों में निर्याकस, आनेसिक्रटस तथा आस्टिोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं।
4. मेगास्थनीज : यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था। इसने अपनी पुस्तक इण्डिका
में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है।
5. डाइमेकस : यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था। इसका विवरण भी मौर्य-युग से संबंधित है।
6. डायोनिसियस : यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राजदरबार में आया था।
7. टॉलमी : इसने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल’ नामक पुस्तक लिखी।
8. प्लिनी : इसने प्रथम शताब्दी में ‘नेचुरल हिस्ट्री’ नामक पुस्तक लिखी। इसमें भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज-पदार्थों आदि
के बारे में विवरण मिलता है।
9. पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन सी : इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है। यह लेखक करीब 80 ई. में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था। इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।
B. चीनी लेखक
1. फाहियान : यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है। इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है। यह 14 वर्षों तक भारत में रहा ।
2. संयुगन यह 518 ई. में भारत आया। इसने अपने तीन वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्रतिलिपियां एकत्रित की।
3. हेनसाँग : यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था । ह्वेनसाँग 629 ई. में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुँचा। यह भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया। वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था। इसका भ्रमण वृत्तांत सि-यू की नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इसने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनुसार सिन्ध का राजा शूद्र था। ह्वेनसांग ने बुद्ध की प्रतिमा के साथ-साथ सूर्य और शिव की प्रतिमाओं का भी पूजन किया था। Sources History इतिहास स्रोत
नोट : ह्वेनसाँग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे। यह विश्वविद्यालय बौद्ध दर्शन के लिए प्रसिद्ध था।
4. इत्सिंग : यह 7वीं शताब्दी के अन्त में भारत आया। इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है।
C. अरबी लेखक
1. अलबरूनी : यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गई उसकी कृति ‘किताब-उल-हिन्द या तहकीक-ए-हिन्द (भारत की खोज)’, आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण
स्रोत है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र
विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इसमें राजपूत कालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति
आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है।
2. इब्न बतूता : इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिहला कहा जाता है, 14वीं शताब्दी में भारतीय
उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियाँ देता है। 1333 ई. में दिल्ली पहुँचने पर इसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन
तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया था।
D. अन्य लेखक
1. तारानाथ : यह एक तिब्बती लेखक था। इसने कंग्युर तथा तंग्युर नामक ग्रंथ की रचना की। इनसे भारतीय इतिहास के
बारे में जानकारी मिलती है।
मार्कोपोलो : यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था। इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के
लिए उपयोगी है।
पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलनेवाली जानकारी
1400 ईसा पूर्व के अभिलेख ‘बोगाज-कोई’ (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इन्द्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) के नाम मिलते हैं।
मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत ‘होलियोडोरस’ के वेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है।
सर्वप्रथम ‘भारतवर्ष’ का जिक्र हाथीगुम्फा अभिलेख में है।
सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है। इस अभिलेख में संकट काल में उपयोग हेतु खाद्यान्न सुरक्षित रखने का भी उल्लेख है।
सर्वप्रथम भारत पर होनेवाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है।
सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानुगुप्त) से प्राप्त होती है।
सातवाहन राजाओं का पूरा इतिहास उनके अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है।
रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है।
कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास (गड्डा घर) का साक्ष्य मिला है। इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं।
प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है।
सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया।
समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है।
अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं। Sources History इतिहास स्रोत
नोट : सबसे पहले भारत के संबंध बर्मा (सुवर्णभूमि-वर्तमान में म्यांमार), मलाया (स्वर्णद्वीप), कंबोडिया (कंबोज) और जावा (यवद्वीप) से स्थापित हुए।
महत्वपूर्ण अभिलेख
अभिलेख शासक
हाथीगुम्फा अभिलेख (तिथि रहित अभिलेख) कलिंग राज खारवेल
जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेख — रुद्रदामन
नासिक अभिलेख — गौतमी बलश्री
प्रयाग स्तम्भ लेख — समुद्रगुप्त
ऐहोल अभिलेख — पुलकेशिन-1
मन्दसौर अभिलेख — मालवा नरेश यशोवर्मन
ग्वालियर अभिलेख — प्रतिहार नरेश भोज
भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख — स्कन्दगुप्त
देवपाड़ा अभिलेख — बंगाल शासक विजयसेन
नोट : अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है।
मंदिरों की शैली
उत्तर भारत के मंदिरों की कला की शैली नागर शैली एवं
दक्षिण भारत के मंदिरों की कला द्राविड़ शैली कहलाती है।
दक्षिणापथ के मंदिरों के निर्माण में नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों का प्रभाव पड़ा, अतः यह वेसर शैली कहलाती है।
पंचायतन शब्द मंदिर रचना शैली से संबंधित है। एक हिन्दु मंदिर तब पंचायतन शैली का कहलाता है जब मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा होता है।
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भारत का इतिहास (Sources History इतिहास स्रोत)
उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है, जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में ‘भारतवर्ष अर्थात् भरत का देश’ तथा यहाँ के निवासियों को भारती अर्थात् भरत की संतान कहा गया है। यूनानियों ने भारत को इंडिया तथा मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्द अथवा हिन्दुस्तान के नाम से संबोधित किया है।
भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन भागों में बाँटा गया है-
1. प्राचीन भारत
2. मध्यकालीन भारत एवं
3. आधुनिक भारत ।
प्राचीन भारत
1. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार स्रोतों से प्राप्त होती है-
1.धर्मग्रंथ
2.ऐतिहासिक ग्रंथ
3.विदेशियों का विवरण
4.पुरातत्व-संबंधी साक्ष्य
धर्मग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारी
भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है, जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेद बसुद्धैव कुटुम्बकम् का उपदेश देते है। भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरूषय मानती है। वेद चार हैं—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। इन चार वेदों को संहिता भी कहा जाता है।
ऋग्वेद
ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है। इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त (बालखिल्य पाठ के 11 सूक्तों सहित) एवं 10,462 ऋचाएँ हैं। इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते हैं। इस वेद से आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं उनके इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है। इसके 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।
इसके 8वें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है। Sources History इतिहास स्रोत
चातुष्वर्ण्य समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्वेद के 10वें मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त है, जिसके अनुसार चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख, भुजाओं, जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए।
ब्राह्मण – मुख
क्षत्रिय – भुजाओं
वैश्य – जंघाओं
शूद्र – चरणों
नोट : धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों, व्यवसायों, दायित्वों तथा विशेषाधिकारों में स्पष्ट विभेद करता है।
वामनावतार के तीन पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्रोत ऋग्वेद है।
ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गयी है।
नोट : प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है।
यजुर्वेद
सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते हैं।
यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता है।
यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है।
सामवेद
‘साम’ का शाब्दिक अर्थ है गान । इस वेद में मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले ऋचाओं (मन्त्रों) का संकलन है। इसके पाठकर्ता को उद्रातृ कहते हैं।
इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
नोट: यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता है।
अथर्ववेद
अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्य हैं। इसके कुछ मंत्र ऋग्वैदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर है। अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निन्दा करता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व इस बात में है कि इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है।
पृथवीसूक्त अधर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है। इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों- गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गों का गाहन (खोज), रोग निवारण, समन्वय, विवाह तथा प्रणय गीतों, राजभक्ति, राजा का चुनाव, बहुत से वनस्पतियों एवं औषधियों, शाप, वशीकरण, प्रायश्चित, मातृभूमि महात्मय आदि का विवरण दिया गया है। कुछ मंत्रों में जादू-टोने का भी वर्णन है।
अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण मिलता है।
इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है। Sources History इतिहास स्रोत
पुराण – संबंधित वंश
विष्णु पुराण – मौर्य वंश
मत्स्य पुराण – आन्ध्र सातवाहन
वायु पुराण – गुप्त वंश
नोट: सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।
वेदों को भली-भाँति समझने के लिए छह वेदांगों की रचना हुई। छह वेदांग हैं-
1. शिक्षा,
2. ज्योतिष
3. कल्प
4. व्याकरण
5. निरूक्त
6. छंद ।
पुराण
भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है। इसके रचयिता लोमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। इनकी संख्या 18 है, जिनमें से केवल पाँच-मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राह्मण एवं भागवत में ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है।
नोट: पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है। अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गये हैं। स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी, वे भी पुराण सुन सकते थे। पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे।
स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी संहिता से प्राप्त होती है जिसमें जुआ और शराब की भाँति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है।
शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पुरुष की अर्धागिनी कहा गया है।
स्मृतिग्रंथों में सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जाती है। यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है।
नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
जातक में बुद्ध की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है। Sources History इतिहास स्रोत
हीनयान का प्रमुख ग्रंथ ‘कथावस्तु’ है, जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन-चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है।
जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। जैनधर्म का प्रारंभिक इतिहास ‘कल्पसूत्र’ से ज्ञात होता है। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन-कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है।
अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) हैं । यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है। इससे मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया। कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है, जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है।
अरबों की सिंध-विजय का वृत्तांत चचनामा (लेखक-अली अहमद) में सुरक्षित है।
‘अष्टाध्यायी’ (संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक) के लेखक पाणिनि हैं। इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
कात्यायन की गार्गी-संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है, फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।
पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे, इनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास का पता चलता है।
ईसा पूर्व B.C. एवं ईसवी AD
वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर (ईसाई कैलेंडर/जूलियन कैलेंडर) ईसाई धर्मगुरु ईसा मसीह के जन्म-वर्ष (कल्पित) पर आधारित है। ईसा मसीह के जन्म के पहले के समय को ईसा पूर्व (B.C.-Before the birth of Jesus Christ) कहा जाता है। ईसा पूर्व में वर्षों की गिनती उल्टी दिशा में होती है, जैसे महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में एवं मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हुआ। यानी ईसा मसीह के जन्म के 563 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध का जन्म एवं 483 वर्ष पूर्व मृत्यु हुई।
ईसा मसीह की जन्म तिथि से आरंभ हुआ सन्, ईसवी सन् कहलाता है। इसके लिए संक्षेप में ई. लिखा जाता है। ई. को लैटिन भाषा के शब्द A.D. में भी लिखा जाता है। A.D. यानी Anno Domini जिसका शाब्दिक अर्थ है- In the year of lord Jesus Christ
विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी
A. यूनानी-रोमन लेखक
1. टेसियस : यह ईरान का राजवैद्य था। भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है।
2. हेरोडोटस : इसे ‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है। इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के भारत-फारस
(ईरान) के संबंध का वर्णन किया है। परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियों एवं अफवाहों पर आधारित है।
3. सिकन्दर के साथ आनेवाले लेखकों में निर्याकस, आनेसिक्रटस तथा आस्टिोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं।
4. मेगास्थनीज : यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था। इसने अपनी पुस्तक इण्डिका
में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है।
5. डाइमेकस : यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था। इसका विवरण भी मौर्य-युग से संबंधित है।
6. डायोनिसियस : यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राजदरबार में आया था।
7. टॉलमी : इसने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल’ नामक पुस्तक लिखी।
8. प्लिनी : इसने प्रथम शताब्दी में ‘नेचुरल हिस्ट्री’ नामक पुस्तक लिखी। इसमें भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज-पदार्थों आदि
के बारे में विवरण मिलता है।
9. पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन सी : इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है। यह लेखक करीब 80 ई. में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था। इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।
B. चीनी लेखक
1. फाहियान : यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है। इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है। यह 14 वर्षों तक भारत में रहा ।
2. संयुगन यह 518 ई. में भारत आया। इसने अपने तीन वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्रतिलिपियां एकत्रित की।
3. हेनसाँग : यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था । ह्वेनसाँग 629 ई. में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुँचा। यह भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया। वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था। इसका भ्रमण वृत्तांत सि-यू की नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इसने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनुसार सिन्ध का राजा शूद्र था। ह्वेनसांग ने बुद्ध की प्रतिमा के साथ-साथ सूर्य और शिव की प्रतिमाओं का भी पूजन किया था। Sources History इतिहास स्रोत
नोट : ह्वेनसाँग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे। यह विश्वविद्यालय बौद्ध दर्शन के लिए प्रसिद्ध था।
4. इत्सिंग : यह 7वीं शताब्दी के अन्त में भारत आया। इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है।
C. अरबी लेखक
1. अलबरूनी : यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गई उसकी कृति ‘किताब-उल-हिन्द या तहकीक-ए-हिन्द (भारत की खोज)’, आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण
स्रोत है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र
विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है। इसमें राजपूत कालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति
आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है।
2. इब्न बतूता : इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिहला कहा जाता है, 14वीं शताब्दी में भारतीय
उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियाँ देता है। 1333 ई. में दिल्ली पहुँचने पर इसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन
तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया था।
D. अन्य लेखक
1. तारानाथ : यह एक तिब्बती लेखक था। इसने कंग्युर तथा तंग्युर नामक ग्रंथ की रचना की। इनसे भारतीय इतिहास के
बारे में जानकारी मिलती है।
मार्कोपोलो : यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था। इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के
लिए उपयोगी है।
पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलनेवाली जानकारी
1400 ईसा पूर्व के अभिलेख ‘बोगाज-कोई’ (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इन्द्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) के नाम मिलते हैं।
मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत ‘होलियोडोरस’ के वेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है।
सर्वप्रथम ‘भारतवर्ष’ का जिक्र हाथीगुम्फा अभिलेख में है।
सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है। इस अभिलेख में संकट काल में उपयोग हेतु खाद्यान्न सुरक्षित रखने का भी उल्लेख है।
सर्वप्रथम भारत पर होनेवाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है।
सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानुगुप्त) से प्राप्त होती है।
सातवाहन राजाओं का पूरा इतिहास उनके अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है।
रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है।
कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास (गड्डा घर) का साक्ष्य मिला है। इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं।
प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है।
सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया।
समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है।
अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं। Sources History इतिहास स्रोत
नोट : सबसे पहले भारत के संबंध बर्मा (सुवर्णभूमि-वर्तमान में म्यांमार), मलाया (स्वर्णद्वीप), कंबोडिया (कंबोज) और जावा (यवद्वीप) से स्थापित हुए।
महत्वपूर्ण अभिलेख
अभिलेख शासक
हाथीगुम्फा अभिलेख (तिथि रहित अभिलेख) कलिंग राज खारवेल
जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेख — रुद्रदामन
नासिक अभिलेख — गौतमी बलश्री
प्रयाग स्तम्भ लेख — समुद्रगुप्त
ऐहोल अभिलेख — पुलकेशिन-1
मन्दसौर अभिलेख — मालवा नरेश यशोवर्मन
ग्वालियर अभिलेख — प्रतिहार नरेश भोज
भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख — स्कन्दगुप्त
देवपाड़ा अभिलेख — बंगाल शासक विजयसेन
नोट : अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है।
मंदिरों की शैली
उत्तर भारत के मंदिरों की कला की शैली नागर शैली एवं
दक्षिण भारत के मंदिरों की कला द्राविड़ शैली कहलाती है।
दक्षिणापथ के मंदिरों के निर्माण में नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों का प्रभाव पड़ा, अतः यह वेसर शैली कहलाती है।
पंचायतन शब्द मंदिर रचना शैली से संबंधित है। एक हिन्दु मंदिर तब पंचायतन शैली का कहलाता है जब मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा होता है।
पंचायतन मंदिर के उदाहरण है-
कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो),
ब्रह्मेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर),
लक्ष्मण मंदिर (खजुराहो),
लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर),
दशावतार मंदिर (देवगढ़, उ.प्र.),
गोंडेश्वर मंदिर (महाराष्ट्र)
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