As you sow so shall you reap

As You Sow So Shall You Reap-जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।

हमारा जीवन भी एक बूमरैंग की तरह  है। बूमरैंग एक ऐसा हथियार है जो चलाने वाले के पास फिर लौट आता है। बहुत साल पहले एक कॉलेज में दो लड़के पढ़ रहे थे। एक बार उन्हें पैसों की कमी पड़ी तो उनके मन में विचार आया कि महान पियानो वादक पैडेरेसकी को पियानो बजाने के लिए बुलाया जाए। इससे जो पैसे इकट्ठे होंगे, उन्हें वे अपनी पढ़ाई और रहने के खर्च में लगाएंगे।  उस महान पियानो वादक के मैनेजर ने $2000 की गारंटी की मांग की। True Story Of Charity जैसा बोओगे, वैसा काटोगे-As You Sow So Shall You Reap

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यह उन दिनों एक बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी। मगर उन दोनों लड़कों ने इसे स्वीकार कर लिया और संगीत समारोह का प्रचार करना शुरू कर दिया। उन्होंने मेहनत तो बहुत की लेकिन 1600 डॉलर ही जमा कर सके। समारोह के बाद दोनों लड़कों ने उस कलाकार को यह समस्या बताई। उन्होंने उसे 1600 डॉलर की सारी रकम दे दी और एक करार नामा भी लिख दिया और कहा कि वे यह बाकी रकम कमा कर जल्दी ही उनके पास भिजवा देंगे। True Story Of Charity जैसा बोओगे, वैसा काटोगे

अब तो उन्हें अपने कॉलेज की पढ़ाई का भी अंत नजर आने लगा।  लेकिन पैडेरेसकी ने कहा-  नहीं मेरे बच्चों, ऐसा नहीं हो सकता।  उन्होंने करार नामा फाड़ दिया और सारा पैसा लौटाते हुए कहा। इस 1600 डॉलर में से अपने सारे खर्चे के पैसे निकाल लो और बची रकम में से 10% अपनी मेहनत के तौर पर रख लो और बाकी बची रकम मैं ले लूँगा।

 साल गुजरते गए, पहला विश्व युद्ध हुआ और समाप्त हो गया। पैडेरेसकी अब पोलैंड के प्रधानमंत्री थे और अपने देश के हजारों भूखें लोगों के लिए खाना जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। और उनकी मदद केवल एक आदमी कर सकता था और वह था यू एस फूड एंड रिलीफ का एक अधिकारी हरबर्ट हूबर। हूबर ने बिना देर किए कदम उठाया, हजारों टन अनाज पोलैंड भिजवा दिया।

पैडेरेसकी भूखे लोगों की समस्या समाप्त होने पर हरबर्ट हूबर को इस सहायता के लिए धन्यवाद देने के लिए पहुंचे।  धन्यवाद सुनकर हूबर ने कहा कि धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है। आपको शायद याद नहीं है कि जब मैं कॉलेज में विद्यार्थी था और मुश्किल में था, तब आपने मेरी मदद की थी। True Story Of Charity जैसा बोओगे, वैसा काटोगे

दोस्तों, जिंदगी का सबसे खूबसूरत तोहफ़ा यही है कि जब भी हम किसी का भला करते हैं तो हमारा भला कुदरती रूप से अपने आप हो जाता है। अच्छाई वापसी का रास्ता ढूंढ ही लेती है। यह प्रकृति का बुनियादी नियम है। अच्छा काम करते समय फल पाने की इच्छा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि फल तो वापस लौट कर आएगा ही। जरा सोच कर बताइए आख़िरी बार आपने किसके लिए कुछ अच्छा किया था। किसी की ओर मुस्कुराना, किसी की तारीफ करना, ये भी अच्छे कार्य हैं। इन्हें करते रहिए, आपको खुशी मिलती रहेगी। फिर भी जीवन में कहीं कोई टेंशन हो, तो तुरंत मुझे फ़ोन करें-97539 78693

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