विल्मा रुडोल्फ-अपंगता से ओलम्पिक गोल्ड मैडल तक-Wilma Rudolph
यह कहानी है एक लड़की की जिसे ढाई साल की उम्र में पोलियो हुआ जिसका अपंगता के कारण स्कूल में दोस्तों को यहां तक कि शिक्षक के द्वारा भी मजाक उड़ाया गया जिसका जन्म एक बेहद गरीब अश्मित परिवार में हुआ जो 11 साल की उम्र तक बगैर ब्रेस के चल नहीं पाई लेकिन 21 साल की उम्र में उसने बुलंद हौसलों से ओलंपिक में कितने गोल्ड जीते क्यों उसके सम्मान में श्वेत और अश्वेत दोनों का एक साथ भोज आयोजित किया गया। True Story-Wilma Rudolph
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यह कहानी है विल्मा रूडोल्फ की जिससे हम यह सीख सकते हैं- 1. अपंगता आपके शरीर में हो तो चल सकता है किंतु अपंगता आपके मन में नहीं आना चाहिए।
2. आप की गरीबी आपको ऊंचा उठने के लिए प्रेरणा का काम कर सकती है। गरीबी को सफल होने का अवतार बनाओ, ना कि निराश होने का अवसर।
3. बुलंद हौसले हो तो आप वह कर सकते हो जिसे देख कर दुनिया अचंभित हो जाए।
4. सुनने की शक्ति ईश्वर ने दी है किंतु हमें क्या सुनना है वह क्या समझना है यह सिर्फ और सिर्फ हमारा अधिकार है इसलिए जब भी किसी को सुनो सिर्फ सकारात्मक ही सुनो कोई कुछ भी कहे आपको सिर्फ अच्छा ही सुनाना चाहिए।
5. एक लक्ष्य, एक इच्छा शक्ति, एक अटूट विश्वास, लगातार काम, वह परिणाम दे सकता है जो आपको शिखर पर ले जाएगा।
6. जो हमारे पास है, उसके बारे में सोचो, कि उनका उपयोग करके आप क्या कर सकते हो। जो आपके पास है, उससे भी अद्भुत कार्य किए जा सकते हैं।
7. प्रोत्साहन और त्याग दो ऐसी चीजें हैं जिससे किसी को भी शिखर पर पहुंचाया जा सकता है।
8. कौन क्या कहता है, फर्क इससे नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है, कि आप सुनते क्या हो।
कहानी विल्मा रुडोल्फ की सफलता की। विल्मा का जन्म 1939 में अमेरिका के टेनेसी राज्य के एक कस्बे में हुआ। विल्मा के पिता रुडोल्फ मजदूर व माँ दूसरे घरों में सेवा का काम करती थी। विल्मा 22 भाई-बहनों में 19 वे नंबर की थी। विल्मा, बचपन से ही बेहद बीमार रहती थी, ढाई साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया। उसे अपने पैरों को हिलाने में भी बहुत दर्द होने लगा। बेटी की ऐसी हालत देख कर, माँ ने बेटी को सँभालने के लिए अपना काम छोड़ दिया और उसका इलाज़ शुरू कराया। माँ सप्ताह में दो बार उसे, अपने कस्बे से 50 मील दूर स्थित हॉस्पिटल में इलाज के लिए लेकर जाती, क्योंकि वो ही सबसे नजदीकी हॉस्पिटल था, जहाँ अश्वेतों के इलाज की सुविधा थी। बाकी के पांच दिन घर में उसका इलाज़ किया जाता था। विल्मा का मनोबल बना रहे इसलिए माँ ने उसका प्रवेश एक विद्यालय में करा दिया। माँ उसे हमेशा अपने आपको बेहतर समझने के लिए प्रेरित करती थी। True Story-Wilma Rudolph
पांच साल तक इलाज़ चलने के बाद विल्मा की हालत में थोड़ा सुधार हुआ। अब वो एक पाँव में ऊँची ऐड़ी के जूते पहन कर खेलने लगी। डॉक्टर ने उसे बास्केट्बाल खेलने की सलाह दी। विल्मा का इलाज कर रहे डॉक्टर के. एमवे. ने कहा था कि विल्मा कभी भी बिना ब्रेस के नहीं चल पाएगी। पर माँ के समर्पण और विल्मा की लगन के कारण, विल्मा ने 11 साल की उम्र में अपने ब्रेस उतारकर पहली बार बास्केट्बाल खेली।
यह उनका इलाज कर रहे डॉक्टर के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। यह बात जब डॉक्टर के. एम्वे. को पता चली तो वो विल्मा से मिलने आये। उन्होंने उससे ब्रेस उतारकर दौड़ने को कहा। विल्मा ने फटाफट ब्रेस उतारा और चलने लगी। कुछ फीट चलने के बाद, वो दौड़ी और गिर पड़ी। डॉक्टर एम्वे. उठे और किलकारी मारते हुए विल्मा के पास पहुचे। उन्होंने विल्मा को उठाकर सीने से लगाया और कहा शाबाश बेटी। मेरा कहा गलत हुआ, पर मेरी इच्छा पूरी हुई। तुम दौड़ोगी, खूब दौड़ोगी और सबको पीछे छोड़ दोगी। विल्मा ने आगे चलकर एक इंटरव्यू में कहा था कि डॉक्टर एम्वे. की शाबाशी ने जैसे एक चट्टान तोड़ दी और वहां से एक उर्जा की धारा बह उठी। मैंने सोच लिया की मुझे संसार की सबसे तेज धावक बनना है। True Story-Wilma Rudolph
इसके बाद विल्मा की माँ ने उसके लिए एक कोच का इंतजाम किया। विल्मा की लगन और संकल्प को देखकर स्कूल ने भी उसका पूरा सहयोग किया। विल्मा पूरे जोश और लग्न के साथ अभ्यास करने लगी। विल्मा ने 1953 में पहली बार Inter School Race Competition में हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता में वो आखरी स्थान पर रही। विल्मा ने अपना आत्मविश्वास कम नहीं होने दिया। उसने पूरे जोर-शोर से अपना अभ्यास जारी रखा। आखिरकार आठ असफलताओं के बाद 9 वीं प्रतियोगिता में उसे जीत नसीब हुई। इसके बाद विल्मा ने पीछे मुड कर नहीं देखा। वो लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करती रही। जिसके फलस्वरूप उसे 1960 के रोम ओलम्पिक मे देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। विल्मा रुडोल्फ-अपंगता से ओलम्पिक गोल्ड मैडल तक-Wilma Rudolph
ओलम्पिक में विल्मा ने 100 मीटर दौड़, 200 मीटर दौड़ और 400 मीटर रिले दौड़ मे गोल्ड मेडल जीते। इस तरह विल्मा, अमेरिका की प्रथम अश्वेत महिला खिलाड़ी बनी जिसने दौड़ की तीनों प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीते। अखबारों ने उसे ब्लैक गेजल की उपाधी से नवाजा, जो बाद मे धुरंधर अश्वेत खिलाड़ियों का पर्याय बन गई। True Story-Wilma Rudolph
वतन वापसी पर उसके सम्मान में एक भोज समारोह का आयोजन हुआ, जिसमे पहली बार श्वेत और अश्वेत अमेरिकियों ने एक साथ भाग लिया, जिसे विल्मा अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत मानती थी। True Story-Wilma Rudolph
विल्मा ने हमेशा अपनी जीत का सारा श्रेय अपनी माँ को दिया। विल्मा ने हमेशा कहा की अगर माँ उसके लिए त्याग नहीं करती तो, वो कुछ नहीं कर पाती।
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विल्मा रुडोल्फ-अपंगता से ओलम्पिक गोल्ड मैडल तक-Wilma Rudolph
यह कहानी है एक लड़की की जिसे ढाई साल की उम्र में पोलियो हुआ जिसका अपंगता के कारण स्कूल में दोस्तों को यहां तक कि शिक्षक के द्वारा भी मजाक उड़ाया गया जिसका जन्म एक बेहद गरीब अश्मित परिवार में हुआ जो 11 साल की उम्र तक बगैर ब्रेस के चल नहीं पाई लेकिन 21 साल की उम्र में उसने बुलंद हौसलों से ओलंपिक में कितने गोल्ड जीते क्यों उसके सम्मान में श्वेत और अश्वेत दोनों का एक साथ भोज आयोजित किया गया। True Story-Wilma Rudolph
यह कहानी है विल्मा रूडोल्फ की जिससे हम यह सीख सकते हैं- 1. अपंगता आपके शरीर में हो तो चल सकता है किंतु अपंगता आपके मन में नहीं आना चाहिए।
2. आप की गरीबी आपको ऊंचा उठने के लिए प्रेरणा का काम कर सकती है। गरीबी को सफल होने का अवतार बनाओ, ना कि निराश होने का अवसर।
3. बुलंद हौसले हो तो आप वह कर सकते हो जिसे देख कर दुनिया अचंभित हो जाए।
4. सुनने की शक्ति ईश्वर ने दी है किंतु हमें क्या सुनना है वह क्या समझना है यह सिर्फ और सिर्फ हमारा अधिकार है इसलिए जब भी किसी को सुनो सिर्फ सकारात्मक ही सुनो कोई कुछ भी कहे आपको सिर्फ अच्छा ही सुनाना चाहिए।
5. एक लक्ष्य, एक इच्छा शक्ति, एक अटूट विश्वास, लगातार काम, वह परिणाम दे सकता है जो आपको शिखर पर ले जाएगा।
6. जो हमारे पास है, उसके बारे में सोचो, कि उनका उपयोग करके आप क्या कर सकते हो। जो आपके पास है, उससे भी अद्भुत कार्य किए जा सकते हैं।
7. प्रोत्साहन और त्याग दो ऐसी चीजें हैं जिससे किसी को भी शिखर पर पहुंचाया जा सकता है।
8. कौन क्या कहता है, फर्क इससे नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है, कि आप सुनते क्या हो।
कहानी विल्मा रुडोल्फ की सफलता की। विल्मा का जन्म 1939 में अमेरिका के टेनेसी राज्य के एक कस्बे में हुआ। विल्मा के पिता रुडोल्फ मजदूर व माँ दूसरे घरों में सेवा का काम करती थी। विल्मा 22 भाई-बहनों में 19 वे नंबर की थी। विल्मा, बचपन से ही बेहद बीमार रहती थी, ढाई साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया। उसे अपने पैरों को हिलाने में भी बहुत दर्द होने लगा। बेटी की ऐसी हालत देख कर, माँ ने बेटी को सँभालने के लिए अपना काम छोड़ दिया और उसका इलाज़ शुरू कराया। माँ सप्ताह में दो बार उसे, अपने कस्बे से 50 मील दूर स्थित हॉस्पिटल में इलाज के लिए लेकर जाती, क्योंकि वो ही सबसे नजदीकी हॉस्पिटल था, जहाँ अश्वेतों के इलाज की सुविधा थी। बाकी के पांच दिन घर में उसका इलाज़ किया जाता था। विल्मा का मनोबल बना रहे इसलिए माँ ने उसका प्रवेश एक विद्यालय में करा दिया। माँ उसे हमेशा अपने आपको बेहतर समझने के लिए प्रेरित करती थी। True Story-Wilma Rudolph
पांच साल तक इलाज़ चलने के बाद विल्मा की हालत में थोड़ा सुधार हुआ। अब वो एक पाँव में ऊँची ऐड़ी के जूते पहन कर खेलने लगी। डॉक्टर ने उसे बास्केट्बाल खेलने की सलाह दी। विल्मा का इलाज कर रहे डॉक्टर के. एमवे. ने कहा था कि विल्मा कभी भी बिना ब्रेस के नहीं चल पाएगी। पर माँ के समर्पण और विल्मा की लगन के कारण, विल्मा ने 11 साल की उम्र में अपने ब्रेस उतारकर पहली बार बास्केट्बाल खेली।
यह उनका इलाज कर रहे डॉक्टर के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। यह बात जब डॉक्टर के. एम्वे. को पता चली तो वो विल्मा से मिलने आये। उन्होंने उससे ब्रेस उतारकर दौड़ने को कहा। विल्मा ने फटाफट ब्रेस उतारा और चलने लगी। कुछ फीट चलने के बाद, वो दौड़ी और गिर पड़ी। डॉक्टर एम्वे. उठे और किलकारी मारते हुए विल्मा के पास पहुचे। उन्होंने विल्मा को उठाकर सीने से लगाया और कहा शाबाश बेटी। मेरा कहा गलत हुआ, पर मेरी इच्छा पूरी हुई। तुम दौड़ोगी, खूब दौड़ोगी और सबको पीछे छोड़ दोगी। विल्मा ने आगे चलकर एक इंटरव्यू में कहा था कि डॉक्टर एम्वे. की शाबाशी ने जैसे एक चट्टान तोड़ दी और वहां से एक उर्जा की धारा बह उठी। मैंने सोच लिया की मुझे संसार की सबसे तेज धावक बनना है। True Story-Wilma Rudolph
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ओलम्पिक में विल्मा ने 100 मीटर दौड़, 200 मीटर दौड़ और 400 मीटर रिले दौड़ मे गोल्ड मेडल जीते। इस तरह विल्मा, अमेरिका की प्रथम अश्वेत महिला खिलाड़ी बनी जिसने दौड़ की तीनों प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीते। अखबारों ने उसे ब्लैक गेजल की उपाधी से नवाजा, जो बाद मे धुरंधर अश्वेत खिलाड़ियों का पर्याय बन गई। True Story-Wilma Rudolph
वतन वापसी पर उसके सम्मान में एक भोज समारोह का आयोजन हुआ, जिसमे पहली बार श्वेत और अश्वेत अमेरिकियों ने एक साथ भाग लिया, जिसे विल्मा अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत मानती थी। True Story-Wilma Rudolph
विल्मा ने हमेशा अपनी जीत का सारा श्रेय अपनी माँ को दिया। विल्मा ने हमेशा कहा की अगर माँ उसके लिए त्याग नहीं करती तो, वो कुछ नहीं कर पाती।
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subhash
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